राष्ट्र प्रेम की होली
राष्ट्र प्रेम की होली
हृदयस्थल की भावाभिव्यक्ति
"जलें राष्ट्र- रिपु सब होली में,
दुष्ट भृष्ट दुर्दांत जलें।
प्रह्लादों को आँच ना आये
धर्म -विमुख मति-भ्रान्त जलें।।
पापवृत्ति की जले होलिका,
शुचिता का नवरंग उङे।
बृज नंदन! कुछ ऐसे रंग दो,
कुपथ पथी भी सुपथ मुङे।।
गाँव नगर सब हों उल्लासित,
फाग रसिक रस संग सजे हों।
मचल रहा हो अल्हङ यौवन,
ढोलक ताल मृदंग बजे हों।।
आल्हादित हो ...
हृदयस्थल की भावाभिव्यक्ति
"जलें राष्ट्र- रिपु सब होली में,
दुष्ट भृष्ट दुर्दांत जलें।
प्रह्लादों को आँच ना आये
धर्म -विमुख मति-भ्रान्त जलें।।
पापवृत्ति की जले होलिका,
शुचिता का नवरंग उङे।
बृज नंदन! कुछ ऐसे रंग दो,
कुपथ पथी भी सुपथ मुङे।।
गाँव नगर सब हों उल्लासित,
फाग रसिक रस संग सजे हों।
मचल रहा हो अल्हङ यौवन,
ढोलक ताल मृदंग बजे हों।।
आल्हादित हो ...