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एक हसीना थी, मेरे सपनो की
एक हसीना थी, मेरे सपनो की।
दिल दे बैठा अपना उसको।
चाहत थी उससे, और प्यार था।
दोनों साथ में रहने की इंतजार था।



फिर क्या हुआ अनजान थी वो।
लेकिन मेरी जान थी वो।
कभी मुस्काती, कभी हंस लेती।
आती आधी रातों में वो, यूं ही मुझे जगा देती।


कभी जो उठ जाते, नींद टूटने पर।
उसके ही ख्वाबों में रहता।
कभी वो दिन में भी आती , परछाई बनकर।
मै उसके ही ...