वो फ़रिश्ता नहीं जो फ़लक से हो उतरा..
उनकी आंखों से खुलते हैं सवेरों के उफ़ुक़
आस्तान पर उनके आसमान दस्तक देता है..
उनके अक्स से ही खिल-खिलाती हैं दोपहरें
शब-ए-दैजूर उन्हें...
आस्तान पर उनके आसमान दस्तक देता है..
उनके अक्स से ही खिल-खिलाती हैं दोपहरें
शब-ए-दैजूर उन्हें...