...

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वो फ़रिश्ता नहीं जो फ़लक से हो उतरा..
उनकी आंखों से खुलते हैं सवेरों के उफ़ुक़
आस्तान पर उनके आसमान दस्तक देता है..
उनके अक्स से ही खिल-खिलाती हैं दोपहरें
शब-ए-दैजूर उन्हें अपना मस्तक देता है..

बादल मदहोश हैं बंदगी में उनकी
हवाओं का रुख उनका हस्तक देखता है..
वो फ़रिश्ता नहीं जो फ़लक से हो उतरा
वो मुर्शद है, जिससे इजाज़त आसमान लेता है..

© Harf Shaad
Thank you Gulzaar saab for first line..❤️
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