खोया है
खोया है, जो तुझमें कुछ मेरा,
जाने मुझे वो मिलता क्यों नहीं,
या बात को यूं कहूं की,
ढूढ़ने को दिल मेरा करता नहीं।
इत्तेफ़ाक़ कहूं या, खुदा की मर्ज़ी,
मेरा होकर भी मेरा तू नहीं,
कभी तन्हाई में मिला था तू,
अब भीड़ में भी दिखता नहीं।
पता ना कोई, ना जगह है,
जहां पर रहता तू है नहीं,
बंद आंखों से पहचान लेती थी,
अब तेरी मुझमें कोई पहचान...
जाने मुझे वो मिलता क्यों नहीं,
या बात को यूं कहूं की,
ढूढ़ने को दिल मेरा करता नहीं।
इत्तेफ़ाक़ कहूं या, खुदा की मर्ज़ी,
मेरा होकर भी मेरा तू नहीं,
कभी तन्हाई में मिला था तू,
अब भीड़ में भी दिखता नहीं।
पता ना कोई, ना जगह है,
जहां पर रहता तू है नहीं,
बंद आंखों से पहचान लेती थी,
अब तेरी मुझमें कोई पहचान...