...

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खोया है
खोया है, जो तुझमें कुछ मेरा,
जाने मुझे वो मिलता क्यों नहीं,
या बात को यूं कहूं की,
ढूढ़ने को दिल मेरा करता नहीं।

इत्तेफ़ाक़ कहूं या, खुदा की मर्ज़ी,
मेरा होकर भी मेरा तू नहीं,
कभी तन्हाई में मिला था तू,
अब भीड़ में भी दिखता नहीं।

पता ना कोई, ना जगह है,
जहां पर रहता तू है नहीं,
बंद आंखों से पहचान लेती थी,
अब तेरी मुझमें कोई पहचान नहीं।

मेरा ऊंस, गुस्सा, नखरे, तड़प, नज़ाकत,
सब ही तो है तेरे पास हमेशा ही,
कैसे वापस पाऊं उनको मैं अब,
तुझसे मांगने को दिल करता नहीं।

सोच में डूबकर, तैरना भूलती हूं,
इतने इत्तेफ़ाक़ खुदा के पास नहीं,
तेरा मेरा मिलना, और हिज्र तय था,
उसे बदल सकूं, हुनर ऐसा पास नहीं।

हिचकियों में नाम लिया होगा तुमने,
नाम मेरा नहीं, इसमें शक नहीं,
तुझमें एक ज़िन्दगी बची है मेरी,
मांगने तुझसे वो, दिल करता नहीं।

सच तो यही है जान लो,
बात किसी से भी हो मेरी,
तेरे बिना दिल लगता है नहीं,
पर लौटने को, दिल करता नहीं।
© a_girl_with_magical_pen