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मैं और मेरी तन्हाई
मै और मेरी तन्हाई
अक्सर बातें करती है,,,
अब
मुझे बहुत अच्छी लगती है मेरी तन्हाई,
जी भर रो भी लेता हूं और कोई सवाल भी नहीं करता !!

क्ई काम होते है मुझे, मैं उलझा रहता हूं,
तन्हा होते ही मैं खुद से लिपट सा जाता हूं,
मानो,,
कब से तड़प रहा था मिलन को !!

मैं करता हूँ ढ़ेर सारी बातें अपनी तन्हाई से,
शिकवा शिकायतें,
मैं वो भी कह जाता हू तन्हाई से,
जो मैं आहत होकर भी नहीं कह पाता किसी से !!

पूछता हूँ तन्हाई से
"कौन हूं मैं" ?

वो जो मैं स्वंय के लिए महसूस करता हूँ__
या वो जो लोग मेरे लिए सोचते व बोलते रहते हैं !!

जिसके लिए सबकुछ
छोड़ दिया, वो भी
तन्हा छोड़ गया,,
सब मतलब परस्त निकले,
पहले खुद को देखते है,
चाहे उनके लिए अपनी
गर्दन भी कटा दो

कोई नहीं कहेगा तुझे अच्छा
कोई न करेगा तुझे प्यार"
कहती है मेरी तन्हाई मुझसे!!

करेगें सब इस्तेमाल
मतलब के लिए बस ,
जमाने के रंग देखकर हुआ है
दिल बेजार,,
टूटा क्ई बार दिल तो
और टूटा
क्ई बार विश्वास,
पर फिर भी जीना होगा मुझे
और करने होगे अच्छे
व नेक कर्म !!

हाँ ठोकरों से टूटा हूं
कई बार मैं
रुठा भी हूँ कई बार मैं,
कोई न आया मुझे मनाने
मुझे समझाने,
सिवाय मेरी तन्हाई के !!

मेरी तन्हाई करती है मुझे आलिंगन,
और कहती है_
"न मैं वो हूँ जो मैं सोचता हूँ,
" न वो जो लोग"
मैं वो हूँ जिसे ईश्वर ने बनाया है !!
किसी उद्देश्य से !

तभी तो बहुत अच्छी
लगती हैं अब मुझे ,
मेरी तन्हाई,
तन्हा होकर भी अब
नहीं होने देती मुझे तन्हा,

क्यू कि,,?
तन्हाई से इश्क होने लगा है

मै और मेरी तन्हाई,
अक्सर बाते करती है,,,!

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