...

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अपना परिवार
दूर जो शहर अजनबी,
बसी जिसमे अजनबी हसी,
अपने दिखे तो होती आंखे नम सी,
तब गुम होती सभी हसी,
बचपन जवानी, जवानी बुढ़ापा हो चली,
जिम्मेदारी बच्चों पर आ चली,
अपना परिवार देखना पढ़ता है,
तभी कोई प्रेम कहानी ना बनी,
जिम्मेदारी कंधों पर आ थमी,
हर किसी की ज़िंदगी ऐसी सी ही,
कोई समझे कोई रुला लेता अपना परिवार,
हसी खुशी सब पैसों में ही बसी,
मौत हो जाए तो फिर अपनो में छुपी,
पढ़ना भी है खुद से लड़ना भी है,
सब कुछ खुद समझना भी है,
अपना परिवार खुश करना भी है,
ऐसे ही यहा मरना नही है।

Thank you ❤️

© Devansh Baliyan