...

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दायरे और फासलों के बीच पनप रहा इश्क
शबनमी शाम, हसरतें, दौलत, शोहरत शायद तुम्हारे और मेरे बीच दायरा ही कहा जाए।
तुम्हारे शहर की मिट्टी भी,
इत्र से कीमती लगती है‌
खामोश बेरंग...