एक बात जिंदगी के साथ
देखा एक रोज़ मैंने जिंदगी की सरगम को गुनगुनाते किसी रस्ते पर
अपनी ही मैं में मग्न वो हंसती हुई चली जा रही थी
निकली थी शायद घर से फिर से किसी को समझाने को
अपना किरदार निभाने को वो बेताब हुई जा रही थी
ठहरा कर उसे..एक दफा...
अपनी ही मैं में मग्न वो हंसती हुई चली जा रही थी
निकली थी शायद घर से फिर से किसी को समझाने को
अपना किरदार निभाने को वो बेताब हुई जा रही थी
ठहरा कर उसे..एक दफा...