...

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उलझन


मैं हूं ......
पहचाना ?
क्या हुआ ????
तुम लोगों की ही देन हैं
कि मैं आज ऐसा हूं ,
सुलझे को उलझाया था तुमने
और कई पैंतरे भी आज़माए थे मुझपे ,
और आज मैं कुछ इस कदर दिख रहा हूं ,
कि मुझे बनाने वाले ही अनजान है मुझसे ,
वाह ! क्या खूब आविष्कार किया
कि आज तुम ही खो गए मुझमें ,
सुलझे को उलझाकर
क्या सुंदर रूप दिया ,
बस फर्क इतना है कि
तुम्हारी कलाकृति को मैंने प्रस्तुत किया है ,
ठीक जो कुछ समय पहले ,
तुमने मेरा था किया ।