...

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खगोलीय घटनाएं
हैरान
परेशान
ठगी सी रह गई
जहां गहन... इतना गहन
भूमध्य सागर की व्हेल मछलियां
आती होंगी सुरज को चुमने
पर कभी अंदर तक चांद जाते हुए नहीं सुना,

आकाश की आंख से
टूटे हुए मोती भर देते होंगे
संसार के सारे बारिश बनकर,

अनंत ऊंचाई पर होते हुएं भी
उसे टूटना पड़ता है सागर की चाह में,
सुना है चांद के आवर्तन परावर्तन पर
नर्तन करता है उदास दरिया का पानी,

सारी खगोलीय घटनाओं के बीच
अपने सधे हाथों से सारे ग्रह मिलकर
थपते हुए
गढ़ाते हुए,
पकाते हुए
उंगलियों को थाप थाप कर सजाते होंगे
तब जा कर खिलते हैं प्रेम के इंद्रधनुष,

सुना है नभमंडल के सारे नियमों के
विरुद्ध खगोल धरा का धरा रह गया,

जहां जब कोई लौट के नहीं आया
उसने हमेशा रचा धूप का मायाजाल,
चांद के साथ अकेलेपन में,
आकाश पर उदासी फैलाए
अधूरे बिलखते स्वप्न में आया और

मुझसे कोसों दूर
आकाशगंगा से अधिक चमकने वाला
सितारा बन गया

अब दरिया के गर्भ में पलती मछलियाँ
डूबती नहीं किनारे पर आती है
उस सितारे को देखने,

और मैं अपने जीवन की कृष्णपक्ष की
कालिमा को सारे ग्रह नक्षत्रों के साथ जोड़कर
सारे ज्योतिष विज्ञान और खगोलशास्त्र
की आड़ में,

अपनी हथेलियों से ढूंढ रही हुं
उलझे हुए मोह के धागे का इक सिरा
.... जो आज भी
तुम्हारे हाथों में है....!!
© Mishty_miss_tea