ख्वाहिशें और ज़िंदगी
कभी ये गिला कभी वो गिला यूं ही चल रहा है ये सिलसिला
कभी ख़त्म हों न शिकायतें हुआ रोज़ इक नया मसअला
कहीं भी नज़र को घुमाओ तो दिखाई दे है गुबार ही
इसी राह पर था चला कभी जहां लुट गया था वो काफ़िला
यूं ही सोचते रहे उम्र भर इसी बात का तो मलाल है
यूं तो ज़िंदगी ने...
कभी ख़त्म हों न शिकायतें हुआ रोज़ इक नया मसअला
कहीं भी नज़र को घुमाओ तो दिखाई दे है गुबार ही
इसी राह पर था चला कभी जहां लुट गया था वो काफ़िला
यूं ही सोचते रहे उम्र भर इसी बात का तो मलाल है
यूं तो ज़िंदगी ने...