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उसका बयान

कविता भी कभी-कभी
बयान देने पर अड़ जाती है तमाम आलोचकों को धत्ता बताते और दरकिनार करते वह चुनौती देती है उसीतरह जैसे एक औरत के सब्र की बाँध टूटने लगे भरभराकर और वह तमाम मर्यादाओं को ताक पर रख चीखनें-चिल्लानें लगे क्या आपनें...