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आत्म रक्षा
देख कर इस युग की दुर्गति,
दिल रोने का करता है।
शिशु, तरुण या हो वृद्ध,
सम्मान के लिए लड़ना पड़ता है।
भेड़िए छिपे हैं, भेड़ की खाल में,
आखेट को तैयार खड़े।
न उम्र देखे, न पहनावा,
कपट, दुर्भावना से भरे।
आघात शारीरिक हो सकता है,
या हो सकता है मन पर।
पर डरना नहीं है, निशाचरों से,
रहना है, दृढ़ अविचल बन कर।
किसी और पर न हो दारोमदार,
खुद का रक्षण खुद करना है।
और आवश्यक पड़ने पर,
हर तमस का भक्षण करना है।
सीखना है प्रतिरोध और आवाज उठाना
चाहे घर से या चाहे कक्षा में,
किसी कलंक का अस्तित्व मिटाना,
नही गलत है आत्मरक्षा में।
© Jyotsna Sehgal
#writco #writcoapp #poem #selflove #selfbelieve #poetrycommunity #writer #lifestyle #lifelesson #prolificartfaction
@Writco @Aamra.G.khan @Hidden_Writer1
दिल रोने का करता है।
शिशु, तरुण या हो वृद्ध,
सम्मान के लिए लड़ना पड़ता है।
भेड़िए छिपे हैं, भेड़ की खाल में,
आखेट को तैयार खड़े।
न उम्र देखे, न पहनावा,
कपट, दुर्भावना से भरे।
आघात शारीरिक हो सकता है,
या हो सकता है मन पर।
पर डरना नहीं है, निशाचरों से,
रहना है, दृढ़ अविचल बन कर।
किसी और पर न हो दारोमदार,
खुद का रक्षण खुद करना है।
और आवश्यक पड़ने पर,
हर तमस का भक्षण करना है।
सीखना है प्रतिरोध और आवाज उठाना
चाहे घर से या चाहे कक्षा में,
किसी कलंक का अस्तित्व मिटाना,
नही गलत है आत्मरक्षा में।
© Jyotsna Sehgal
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