**तन्हाई का सफर **
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आज तन्हाई से फिर मुलाक़ात हो गई,
वो मुस्कुराई, जैसे कोई राज़ हो गई।
कहा उसने, "तुम कहाँ तक जाओगी?
लौटकर फिर मेरे पास ही आओगी।"
मैंने पूछा, "क्यों यूं हर मोड़ पर आती हो?"
वो बोली, "तुम्हारी हर ख़ुशी को आज़माती हूँ।
तुम्हारे दर्द की हर धड़कन सुनती हूँ,
इसलिए हर पल तुम्हारे साथ रहती हूँ।"
आसमान में कोई तारा टूटा नहीं,
दिल का हर कोना फिर भी रूठा नहीं।
उसने कहा, "उम्मीद की लौ बुझा दो,
मुझे अपना लो, खुद को सजा दो।"
उसकी...
आज तन्हाई से फिर मुलाक़ात हो गई,
वो मुस्कुराई, जैसे कोई राज़ हो गई।
कहा उसने, "तुम कहाँ तक जाओगी?
लौटकर फिर मेरे पास ही आओगी।"
मैंने पूछा, "क्यों यूं हर मोड़ पर आती हो?"
वो बोली, "तुम्हारी हर ख़ुशी को आज़माती हूँ।
तुम्हारे दर्द की हर धड़कन सुनती हूँ,
इसलिए हर पल तुम्हारे साथ रहती हूँ।"
आसमान में कोई तारा टूटा नहीं,
दिल का हर कोना फिर भी रूठा नहीं।
उसने कहा, "उम्मीद की लौ बुझा दो,
मुझे अपना लो, खुद को सजा दो।"
उसकी...