अनजान कातिल
जख्म़ देनेवाले तुझसे रु-ब-रु होना चाहता हुँ
मै अब अनजाने कातिल को देखना चाहता हुँ....
इस से पहले के जमाना चढा दे मुझे सुली पर
मेरे यार मै तुझको इक बयान देना चाहता हुँ....
बहुत हो चुका है अब तेरा इंतिजा़र सितमगर
अजल की दहलीजसे आखरी साद देना चाहता हुँ...
जख़्म दिये तुम ने दाग़ जमाने ने दिए है
मै अब तेरी मुहब्बतसे जुदा होना चाहता हुँ....
© संदीप देशमुख
मै अब अनजाने कातिल को देखना चाहता हुँ....
इस से पहले के जमाना चढा दे मुझे सुली पर
मेरे यार मै तुझको इक बयान देना चाहता हुँ....
बहुत हो चुका है अब तेरा इंतिजा़र सितमगर
अजल की दहलीजसे आखरी साद देना चाहता हुँ...
जख़्म दिये तुम ने दाग़ जमाने ने दिए है
मै अब तेरी मुहब्बतसे जुदा होना चाहता हुँ....
© संदीप देशमुख