...

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माँ की पीड़ा
आज रात चाँद बदली में छिप गया
एक स्वर सुनायी दिया...
चाँद ने घूंघट ओढ़ा है,
वाह!
एक आवाज़ आयी...
चाँद ने बुर्क़ा पहना है
वल्लाह!
चाँद सकते में आ गया
गुर्राते हुए बोला,
"मैं भी पुरुष हूँ...
तुम्हारी तरह"
और रौद्र रूप दिखाते हुए
उसने ला दिया...
सागर में ज्वार
आगे बोला,
"पुरुष हूँ तभी तो साथ निभाता हूँ तुम्हारा,
पुरुषत्व निभाने में।
वो पल-पल घट कर यदि मैं
गहन अंधकार न करता
तो शायद उस चीखती हुई
अबला की पुकार कोई तो सुन पाता।"

यह सुनकर धरा...
बस सन्न हो गयी
शायद यही होता होगा न...
उस माँ के साथ भी
जिसका पुत्र
जेल में होता है,
निरीह स्त्री को अपमानित करने के अपराध में।

#ssg_realization_of_life
© Shweta Gupta