मर्यादा….
मर्यादा…
उस रात
हाँ, उस रात
जब मैं लिखने लगा था तुम्हारे ख़्यालों में
और
मचलने लगी थी मेरी कलम
किसी मनचले युवान की तरह
जो
लिख देना चाहती थी
तुम्हारी देह के हर एक उस तिल को
जिन्हें चूमा था मैंने कई दफ़ा
उन मुलाक़ातों के दरम्यान
ये कलम
बेबाक़ी से...
उस रात
हाँ, उस रात
जब मैं लिखने लगा था तुम्हारे ख़्यालों में
और
मचलने लगी थी मेरी कलम
किसी मनचले युवान की तरह
जो
लिख देना चाहती थी
तुम्हारी देह के हर एक उस तिल को
जिन्हें चूमा था मैंने कई दफ़ा
उन मुलाक़ातों के दरम्यान
ये कलम
बेबाक़ी से...