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यारियां

उलझी है ज़िंदगी यारों दोस्तों की
ज़माने भर के काम-काज में;
रहते थे जो व्यस्त कभी नोंक-झोंक में
और एक दूजे के छिपाने राज़ में।
फोन में भरे पड़े अब कितने
हैं लाइक्स, कोम्मेंट्स और प्यार;
इंतज़ार है इस दिल को
कब कमियाँ निकालने आएंगे यार।
हाय, हेल्लो, यो ,शेक हैंड
कैसे हो, तो अब है गली गली;
कहाँ हैं वो यारों की जादू की झप्पी
दिल को जो देती थी ठंडक और तसल्ली।
पड़े हैं सब अलग-थलग शहरों में
कमाने नाम और रोजी-रोटी;
शहर के नाम से ही हैं बांछें खिलतीं
याद आ जाते लंबू, पढ़ाकू, खिलाड़ी, मोटी।
हर शाम गुनगुनातीं हैं बातें
वो जमघट, वो कटिंग चाय
और वो ठेले की पानीपूरी;
वो भी क्या कैंटीन के दौर थे
यादें ताज़ा करने को ही मिलो
और उतार तो दो अब ये उधारी।

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