...

15 views

मेरा गाँव🏚
मेरे गाँव में अब सावन की हरियाली नहीं रही,
यहाँ की सारी रौनक शहर का रूख कर रही,
यहाँ कागज की वो कश्तियाँ सारी डूब रही,
यहाँ की मिट्टी से वो सौंधी खुशबू छूट रही,
यहाँ अब त्यौहारों की शोरगुल भी नहीं रही,
मेरे गाँव की सारी गलियां अब चुप हो रहीं,
मेरे गाँव में अब होली की पिचकारियां नहीं रही,
मेरे गाँव में अब दीवाली की किलकारियां नहीं रहीं,
यहाँ के बासिंदों को शहर की धूल उड़ा ले गई,
सुन माटी!यहाँ अब वो माटी के लाल वाली बात नहीं है,
इन पुराने बरगदों की गोद थी बचपन बिताने के लिए,
और वो छुट्टियों के मोहताज हैं अब यहाँ आने के लिए ,
अब यहाँ आने के लिए ।।।🙏🏻
© पंकज श्रीवास्तव