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था वक़्त वो जो सुनहरा
दर्द बैठा है इतना गहरा।
यादों का है छाया पहरा।।
रात- दिन लगते एक से।
मानो सबकुछ है ठहरा।।
न जाने क्यों चला गया।
था वक़्त वो जो सुनहरा।।
आवाज़ चुप है घुटन में ।
दिल भी हो गया बहरा।।
छोड़ दे फिक्र न हुए जो।
दिमाग़ धीरे से कह रहा ।।
© ALOK Sharma
यादों का है छाया पहरा।।
रात- दिन लगते एक से।
मानो सबकुछ है ठहरा।।
न जाने क्यों चला गया।
था वक़्त वो जो सुनहरा।।
आवाज़ चुप है घुटन में ।
दिल भी हो गया बहरा।।
छोड़ दे फिक्र न हुए जो।
दिमाग़ धीरे से कह रहा ।।
© ALOK Sharma
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