...

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एक तरफा सही.. (हक से)
इश्क जो मतलबी नहीं था
झूठे वादों, बातों से परे था|

मैं उसे एक बार जो देख लेता तो दिन मेरा बन जाया करता था
एक अरसा हो गया उसे देखे आंखों सामने

जो अगर फिर कभी मिली तो बताऊंगा तुम्हें की सपनों में तुम्हें नहीं देखा करता हूं अक्सर

दरवाजे बंद किए थे मैंने सारे याद से
कुछ दरारों से तुम्हारे इश्क मुझ तक पहुंचा

तुम्हारे आगे पीछे लगे होंगे हजारों दीवाने पर तुम्हें पता है कि मैं उनमें से नहीं हूं, वैसे मैं
हर रोज तुम्हें हारता हूं
हर रोज तुम्हें जीता हूं

बहुत लोग गिरे हुए हैं इस धूल भरे दलदल मे मैं फिर उठता हूं अपने कपड़े साफ करता हूं और तुमसे इश्क करने खड़ा हो जाता हूं.. .

क्योंकि इश्क ये मतलबी नहीं है
उन झूठे, वादे-बातों में नहीं है|

© Akash dey