...

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हमसफ़र का साथ?
अनजानी सी राह थी कुछ अनजाना सा सफर
मंज़िल की तलाश थी साथ चाहिए था कोई हमसफर
आंखों ने देखा उसे ख्वाबो में वो छा गया
कोई आ गया ज़िन्दगी में दिल को ये भा गया
सच जानती थी उससे दूर जाने का पर ज़िद पकड़ा था उस खुदा को भी मनाने का
फिर ......,फिर क्या.....
कहानी यूँ ही चलती गयी
उसका पता नही पर मैं मचलती गयी...