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स्व-भाव: जीवन और जगत मे सफ़लता की असल कुंजी।
इतना स्मरण रखो जीवन मे..
के जगत और परमात्मा जुदा नहीं हैं
वे एक ही अस्तित्व के दो स्वरूप हैं..
जैसे तन और मन...
जगत के प्रति जो भाव रखोगे..
वही तुम्हारे पास लौट कर आएगा..
नफ़रत तो नफ़रत ईर्षा तो ईर्षा...
प्रेम तो प्रेम...
जीवन मे तुम्हें बहुत कुछ ऐसा मिला हुआ हैं जो बहुतों को नहीं मिला हुआ हैं...
दीप अकसर एक बात कहती हैं..
जीवन मे दुख आता हैं..
अथवा कठिन परिस्थिति आती हैं
तो हम कहते हैं अस्तित्व से,
क्यों? मैं ही क्यों?
मेरे साथ ही ऐसा क्यों?
मग़र कभी तुमने परमात्मा से प्रश्न किया हैं..
जीवन के जो सुख मिले हुए हैं..
क्यों मेरे साथ ही क्यों...
दिप कहती थी..
अपने बालय अवस्था मे वह यही प्रश्न करती थी...
जब वह किसी भूखे बच्चे को देखती..
मन मे यह प्रश्न उठता क्यों प्रभु.. क्यों?
मेरे जीवन मे भोजन हैं उसके जीवन मे क्यों नहीं.. ?
मुझे इतनी सहूलियत मिली हुई हैं..
उसे क्यों नहीं?..
तब नन्हा मन प्रभु से यह प्राथना करता हैं..
ठीक हैं प्रभु तूने उसे नहीं दिया तो कोई नहीं मुझे इस काबिल बनाना के जिसे तुने नहीं दिया उसे मैं दे सकूँ
मेरा भोला बच्चा नादान मन...
मेरे ज़रिए भी तो जिसे मिलता हैं उसे भी वही तो देता हैं..
मैं तो महज़ ज़रिया बन जाती हूं..
बाकी व्यक्ति स्वयम अपने कर्म का भोगी..
सुख का भी दुख का भी..
यदि मेरे कर्म सही हैं ना..
तो दुनियाँ मे कोई रास्ता भी ना होगा ना..
बंद दीवारों से भी मेरे लिए मेरी नियति निर्मित हो जाएगी
मैंने जो चाहा वो मुझे मिल ही जाएगा..
सो दूजे ने भी जो पाया उसके कर्म का ही भोग हैं...
इस जीवन का नहीं तो किसी और जीवन का...
जगत जीवन स्थिति परिस्थिति तो महज़ कठपुतली हैं
तुम्हारे कर्म की और उस अस्तित्व की
बजाए इस बात के गौर करने के दूसरे ने क्या पाया
यदि तुमहारा ध्यान इस बात पर होता हैं के तुम क्या पाना चाहते हों..
और तुम्हारा ध्यान महज़ तुम्हारे कर्म पर होता हैं और नज़र लक्ष्य पर..
अर्जुन की तरह..
ये नहीं की मछली छटपटा रही हैं, या परिंदा हिल रहा हैं..
तुम्हें जो चाहिए तुम उस पर गौर फर्माओ अपने कर्म पर नाके दूसरे को मिले फ़ल पर...
तब देखो कैसे सारे रास्ते तुम्हारे लिए निकलते हैं..
दुनियाँ के लिए नहीं मग़र तुम्हारे लिए स्थिति परिस्थिति बदल जाएगी...
स्वयम अस्तित्व तुम्हारे लिए कार्यरत होगा,
सारे अस्तित्व की शक्ति तुम्हारे साथ होगी...
किंतु तुम अर्जुन सा समर्पित मन तो रखो
स्वयं अस्तित्व तुम्हारा सारथी होगा..
स्वयम महाबली हनुमान तुम्हारे रथ का रक्षक होगा..
स्वयम दुर्गा... तुम्हारे आभा को घेरे रहेगी..
और सबसे उपर स्वयम दुश्मन कर्ण जो हकीकत आपसे भी अधिक शक्ति शाली हैं.. (क्योंकि दाता.. देने वाला सदेव शक्ति शाली होता हैं..)विरोधी परिस्थिति का सबसे बलशाली सैनिक भी आपके...