...

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वो सांवली सी.....
रंग रुप कौन देखता है प्यार मे
जैसे रात दिन कौन देखता है बरसात मे
दिल बस आगया तो आ गया
मूड बन गया तो बन गया
कौन जाने दिल की बागडोर किसके हाथ है पासवाले उम्मीदें लगाए रहते है
पथिक कोई मोती चुन ले जाता है
अचानक से ही दिखी थी वो
वही सांवली सी लडकी
जिस उम्र मे थी वो
वो उम्र थी अल्हड़पन की... पर
बेहद संजिदा थी वो
दो चार रोज मिलते रहने पर
एकदिन मेरे दिल ने मुझसे कहा
ये सावली सी लडकी मुझे पसंद है
मैने कहा ऐसे कैसे..??
तुम पडो ऐसे कैसे के चक्कर मे
मै तो उसका हो चुका
मै तो सोच मे पड गया
और दिल की ही बातो मे ढल गया
रोज की तरह वो जब आई
मैने गहरी नजर उसपे फिराई
बुरी तो नही है
अरेएएएए, इसकी आंखें तो बहुत ही भली है
घने लंबे बाल
बेमिसाल है चाल
नितंब है सुडौल... मुखडा है गोल गोल
लंबी सी है, छडहरी भी है
स्वभाव से उनमुक्त है
यौवन तो मस्त मस्त है
पर पहरे जबरदस्त है
पर मै भी अहम वाला हूँ
स्वभाव से मतवाला हूँ
भिक्षा न इससे मांगूगा
चाहे कितने ही दिन गुजारूंगा
मजा तो जब है ,
जब वो बेचैन हो
नही तो झट से पूछेगी
बताओ तुम कौन हो ??
उसको भी जरा मिलने दो
बातो मे घुलने दो
खुद ही पिघल जायेगी
देखकर मुस्कुराऐगी
दोस्ती की रट लगाएगी
पर सिर्फ हथेली नही चाहिए मुझे
दोस्ती से है इन्कार मुझे
संगिनी चाहिए मुझे, उम्र भर के लिए
अब रोटी गोल नही होती
सब्जी मे स्वाद नही होती
मेरी रसोई की मालकिन बनो
नित झोला मेरे हाथ धरो
बोलो सब्जी ले आओ जी
मै जल्दी से खाना बनाउं जी
फिर कंबल मे दोनो पडे रहे
सरदी का सही इस्तेमाल करे
बोलो चौखट कब लांघोगी
दुल्हन बनके कब आओगी????