...

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...कोई सपना था
आंखों में, कोई सपना था
कल तक, कोई अपना था
कोई अपना दूर हुआ,
सपना चकनाचूर हुआ

मुस्कानों से कस्में थे,
महके-महके वादे थे
पहचानों से किस्से थे,
दहके-दहके इरादे थे
आंखों ने, कुछ रचना था
कल तक, कुछ अपना था
कुछ अपना बेनूर हुआ,
रचना चकनाचूर हुआ
आंखों में, कोई...

अहसासों की सदियां थी,
हंसते-हंसते लम्हें थे
विश्वासों की दुनिया थी,
चलते-चलते रस्ते थे
आंखों से, सब कहना था
कल तक, सब अपना था
सब अपना बेसऊर हुआ,
कहना नामंजूर हुआ
आंखों में, कोई...

*विपिन कुमार सोनी (c)
07.12.2002
02.02.2004
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