...

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// मन की बेचैनी//

ख्यालों की दुनिया में आत्मा की उपज,
किसी को देखने की तड़प,
किसी को कुछ कह देने एवं सुन लेने की ललक,
बढ़ा देती हैं अक्सर मन की बेचैनियाँ।

आँखे न जाने किसकी दीदार को तड़पती है
कश्क उठती दिल के अंदर, खो जाती रातों की नींदें,
बेबस होता है मन तब गिरते हैं तकिए पर आँखों से आँसू,

पा लेने की चाहत खो देने का डर,
अजीब कसमकस् में रहता आज कल मन तेरे बगैर।
लड़ ले ,झगड़ ले, मुँह फेर कर चल दे चाहे जिधर।
ना सुकून से रह पाते ना चैन है,
जाने कैसा दौर है क्यों इतना मन बेचैन है।

जिसे देखो किसी ना किसी कश्क में पागल है,
जियो अपनी जिंदगी क्यों मन इतना घायल है,
अंजानी चिंताओं की धुआँ में गुम मन आवारा बादल है,
ख्यालों की स्वतंत्रता मन में आते ही,
क्यों लहराता ये आँचल है।।।
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