...

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पुरुष
जो दिनों में घंटों में लम्हों में बंध गया
वो पुरूष हैं
इंतजार में प्यार में तकरार में बंध गया
वो पुरूष हैं
पेड़ों पे पत्तों पे मन्नतों में कलाई में बंध गया
वो पुरूष है
वचनों में शर्तों में मंगलसूत्र में तो कभी सिंदूर में
बंध गया वो पुरूष है
कच्चे मौली के महीन धागे में भी मजबूती से
बंध गया वो पुरूष है
रिश्तों में कर्तव्यों में जिम्मेदारी में
हर चीज में तो बंधा पड़ा है
कहीं शक्ति में तो कहीं भक्ति में
सदियों से तो बंधता आ रहा है हर जगह
और स्त्री हमेशा बांधती आई है उसको
फिर ये कैसे मान लिया गया कि स्त्री पर बंधन है
और पुरुष आजाद हैं????
Namita Chauhan