...

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मुस्कान
देखा है कईयों बार.,,,,,
स्त्री मुस्कुराती तो हैं
मगर खुश नहीं रहती
पास तो रहती हैं तेरे
पर साथ नहीं होती

सांस तो लेती हैं मगर
वो जीती नहीं हैं
तुम उसे टच तो कर लेते हो
पर वो अनछुई ही रहती हैं

खोकर के अपना अस्तित्व
तुम्हारा आवरण ओढ लेती है
खुद को करके खत्म वो
तुम्हें निखार भी देती हैं

पर सिसकती हैं अंदर तक
आखें बस बरसने को होती हैं
भीड़ में रहकर भी तन्हा रहती हैं
जीती जागती कठपुतली हैं

बस घर बना रहे,रिश्ते टूटे नहीं
तो हर पल खुद को तोड़ती रहती हैं
ढलबा लोहे, पिटवा लोहे की तरह
खुद को ढ़ाल,ठोक लेती हैं
एक ऐसे धागे के संग बंधी रहती
जहां हर पल ही जोड़ लगाती हैं
और एक दिन,थककर सो जाती हैं
#ज्योतिमेहरा🌼🌼🌼🌼

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