मुस्कान
देखा है कईयों बार.,,,,,
स्त्री मुस्कुराती तो हैं
मगर खुश नहीं रहती
पास तो रहती हैं तेरे
पर साथ नहीं होती
सांस तो लेती हैं मगर
वो जीती नहीं हैं
तुम उसे टच तो कर लेते हो
पर वो अनछुई ही रहती हैं
खोकर के अपना अस्तित्व
तुम्हारा आवरण ओढ लेती है
खुद को करके...
स्त्री मुस्कुराती तो हैं
मगर खुश नहीं रहती
पास तो रहती हैं तेरे
पर साथ नहीं होती
सांस तो लेती हैं मगर
वो जीती नहीं हैं
तुम उसे टच तो कर लेते हो
पर वो अनछुई ही रहती हैं
खोकर के अपना अस्तित्व
तुम्हारा आवरण ओढ लेती है
खुद को करके...