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चाँद का ग़ुरूर
#चाँदसमुद्रसंवाद
चाँद इतरा के समुन्द्र से बोला
मैं तो खुले गगन में बड़े ठाट से रहता हूँ
तुम इक जगह ही पड़े रहते
मैं जग में भ्रमण करता हूँ
मुझसा खुशनसीब कोई ना
सबके दिलों में बसता हूँ |

अपनी गुरुत्व शक्ति से हमेशा
लेता खींच तुम्हें अपनी ओर
ना कुछ कर सकते कुछ भी तुम
चाहे लगा लो कितना भी जोर

समुन्द्र स्थिर भाव से बोला
अपने नूर पर ना करो ग़ुरूर
चमकते होते सूरज की रौशनी से
फिर भी रहते सदा मद में चूर

मेरे भीतर जीव बहुत हैं खेलते
वातसल्यता की भावना हूँ मैं पाता
नहीं चाहिए कोई चमक -दमक मुझे
सबका प्यार ही हैं मुझको भाता ||