#1 काश मैं तुमसे मिली न होती
मुझे मालूम था तुम्हारी,
निगाहों के इशारे का
काश मैं पीछे मुड़कर,
देखी न होती
रातों को रोना भी सही था
काश तुझे गले लगाकर
मैं रोई न होती
महफिल ए बेवफा
सजाते हो तुम
नाम पर मेरे
काश मैं तुमसे कभी
मिली ही न होती
© All Rights Reserved
निगाहों के इशारे का
काश मैं पीछे मुड़कर,
देखी न होती
रातों को रोना भी सही था
काश तुझे गले लगाकर
मैं रोई न होती
महफिल ए बेवफा
सजाते हो तुम
नाम पर मेरे
काश मैं तुमसे कभी
मिली ही न होती
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