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सीधा साधा !!
मैं सीधा सीधा ठहरा,
कही पूरा कहीं आधा ठहरा !!
चांद भी उसका सूरज भी उसका,
मैं इंसान सा वो भी बेचारा ठहरा !!
दूर कहीं बादलो में जिसके कदम हो,
मैं सूखी नदी का वो भी किनारा ठहरा !!
हर जंग में हारना तय मेरा मुनासिब है,
मुझे कहां तख्त ओ ताज का सहारा ठहरा !!
वो चाहे न चाहे वो मेरी सोच में वाजिब है
मैं कुम्हार सा हूं वो भी सीधा साधा ठहरा !!
© 1rfan_writes
कही पूरा कहीं आधा ठहरा !!
चांद भी उसका सूरज भी उसका,
मैं इंसान सा वो भी बेचारा ठहरा !!
दूर कहीं बादलो में जिसके कदम हो,
मैं सूखी नदी का वो भी किनारा ठहरा !!
हर जंग में हारना तय मेरा मुनासिब है,
मुझे कहां तख्त ओ ताज का सहारा ठहरा !!
वो चाहे न चाहे वो मेरी सोच में वाजिब है
मैं कुम्हार सा हूं वो भी सीधा साधा ठहरा !!
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