...

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क्यों ये दिल बेचारा है
ख़्वाबों में पास, हकीकत में मुझसे दूर है
उसकी इस नाराज़गी से दिल मेरा चकनाचूर है
दूर तो हो गई है मुझसे ना जाने किस बात से
पर बस्ती है दिल के हर टुकड़े में इतना सा सुरूर है

अधूरे से वादों को अधूरा ही छोड़ गई
ना जाने क्यू मुझसे मुह मोड़ गई
बाक़िब होकर भी दूर होने के अंजाम से
ना जाने क्यों दिल मेरा तोड़ गई

एक वक़्त था जब अपनी हरकतों से मुझे वो सताती थी...