...

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गज़ल- सब्र के प्याले।
सब्र के प्याले उनके, भर क्यूं नहीं जाते।
दीवानें जो तेरे ज़िंदा हैं, मर क्यूं नहीं जाते।

सड़क पे सोने वाले, ये सोचते हैं अक्सर
जिनके अपने घर हैं, वो घर क्यूं नहीं जाते।

तुम्हारी लकीरों में मैं मिलूं, मेरी लकीरों में तुम
मेरे हाथों पे अपना हाथ, रगड़ क्यूं नहीं जाते।

चाहता हूं मैं भूलना, पर भूलूं भी तो किस तरह
शाखों से सूखे हुए पत्ते, झड़ क्यूं नहीं जाते।

खुशियां न दे सको तो, गम ही दे दो मुझे तुम
तुम विरासत ये मेरे नाम, कर क्यूं नहीं जाते।
© वरदान