...

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दहेज....
बेवसी उस बाप की बेटी नही ब्याही गई।
मेहंदी का रंग ना चढ़ा सुनी हथेली रह गई।
पगड़ी उतारी बाप ने सम्मान से अपमान में।
क्या कमी आई ब्याह में दहेज के प्रावधान में।
वो मांग सुनी रह गई अरमान आँशु में बहे।
बेटी नही अपमान है ये बाप बेवस हो कहे।
पीड़ा उठी है हृदय में माँ का कलेजा फट गया।
ना बस सका बेटी का घर लालच गरीबी से कह गया।
सृंगार से मुखड़ा सज़ा उम्मीद थी पिया मिलन की।
मंडप सजाया भाई ने लालच में मंडप जल गया ।
ताना सुना उस बाप ने कदमो में सर को झुका दिया।
बढ़ गया लोभ दहेज का नारी पवित्रता गिरा दिया।
सब दे रहे दुत्कार है बेटी को क्यो कुछ ना दिया।
कैसे बताये बाप वो सम्मान गिरवी रख दिया।
मंडप सज़ा था फूल से जोड़े का पीला रंग था।
आँशु रुके ना आंख से ये देख घूंघट दंग था।
बेटी बिदाई ना हुई क्यों आँशु अब बहने लगे।
देखा जो रोता बाप को घूंघट से आँशु कहने लगे।
बारात वापस हो गई लालच में बहके दहेज के।
सब कुछ लगा था दाव पर जो रखा था सहेज के।
पल में वो दुनिया उजड़ गई सम्मान खोया बाप का।
माँ रोये खुद को छुपा के है ये सज़ा किस पाप का।
रुकते ना आँशु आंख से मनहूस बेटी सब कहे।
क्या दोष था उस बाप का सो गया पगड़ी के तले।
माता की आंखे ना खुली धक्का हृदय में लग गया।
छाई खुशी थी चेहरे पर पल में वो मंज़र बदल गया।
जो दान कन्या दान था वो दान अपमान बन गया।
उस दान के अभिशाप में सब जान लालच ले गया।
श्मशान मंडप हो गया ना थी ज़रूरत कफन की।
अरमान टूटा मान का गैरत में लाशें दफन थी।

© Roshanmishra_Official