...

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"क्या हाल हैं ज़नाब के"
जो घौंसलों में रह गए हों हौंसले ज़नाब के।
तो हौंसलों से पूछिए क्या हाल हैं ज़नाब के।।

कटी पतंग की डोर से जो सर कुचल दे साँप के।
उनकी हुई है जीत जो रखें कदम ये नाप के।।

चूना लगे सरकार को जब सत्ता-सत्ता जाप के।
तो हौंसलों से पूछिए क्या हाल हैं ज़नाब के।।

तकलीफ़ के जो दिन दिखे तो दिन बताएँ पाप के।
सत्ता मिलते फुँफकारते ख़ुदा बचाएँ उस साँप से।।

जिसने चुना सरकार को उस पर चले रुआब ये।
तो हौंसलों से पूछिए क्या हाल हैं ज़नाब के।।

भूपेन्द्र डोंगरियाल
10/09/2020


© भूपेन्द्र डोंगरियाल