...

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जिद्द
ज़िद्द

हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे 
उठना पड़ेगा ख़ुदा को भी
कुछ ऐसा कर जाएंगे ।

तकलीफों के समंदर को पार किया
बार - बार किया 
मरा बार - बार, फिर भी जीया 
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।

धूप और भूख को जीता बार - बार
हर तूफ़ान को किया तार - तार
झुका , गिरा , फिर उठा मैं बार - बार
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।

कैसा दुःख और फिर संताप कैसा 
जिंदा हूं जबतक फिर ताप कैसा 
हर ताप सहा , बार - बार सहा 
खड़ा हूं मैं अब भी फिर संताप कैसा 
हादसों की...