जिद्द
ज़िद्द
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे
उठना पड़ेगा ख़ुदा को भी
कुछ ऐसा कर जाएंगे ।
तकलीफों के समंदर को पार किया
बार - बार किया
मरा बार - बार, फिर भी जीया
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।
धूप और भूख को जीता बार - बार
हर तूफ़ान को किया तार - तार
झुका , गिरा , फिर उठा मैं बार - बार
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।
कैसा दुःख और फिर संताप कैसा
जिंदा हूं जबतक फिर ताप कैसा
हर ताप सहा , बार - बार सहा
खड़ा हूं मैं अब भी फिर संताप कैसा
हादसों की...
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे
उठना पड़ेगा ख़ुदा को भी
कुछ ऐसा कर जाएंगे ।
तकलीफों के समंदर को पार किया
बार - बार किया
मरा बार - बार, फिर भी जीया
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।
धूप और भूख को जीता बार - बार
हर तूफ़ान को किया तार - तार
झुका , गिरा , फिर उठा मैं बार - बार
हादसों की दास्तां हूं मैं
हर अंजाम सह लेंगे ।
कैसा दुःख और फिर संताप कैसा
जिंदा हूं जबतक फिर ताप कैसा
हर ताप सहा , बार - बार सहा
खड़ा हूं मैं अब भी फिर संताप कैसा
हादसों की...