...

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कुछ करने नहीं देती...
तन्हा दिन तो कट जाता है,
पर उसकी यादें, रातों को काटने नहीं देती।

मौसम साल में गुजर जाता है,
पर कोई हुस्न, वो जज्बात को बदलने नहीं देती।

ये कैसा सिलसिला है ऐ मेरे खुदा...

आखिर में साँसें तो चली जाती है,
पर उसकी अलामत, आँखों को मुंदने नहीं देती।।

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© सराफ़त द उम्मीदभरे क़लाम