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बेदिली
बेदिली

ख़्वाबों को वो संदूक में बंद कर आयी थी
जब उस से कह दिया गया वो पराई थी

इच्छाएं तो उसकी चौखट से लौट गई
रिवाज़ों के नाम पे बेचारी इतनी लाचार हो गई

बड़ी बेदिली थी ज़िन्दगी को उस से
आज सजी इतनी फिर कभी सजने की फुर्सत न मिली

यूं तो घड़ी आज विदाई की आई
ये उसकी थी या खुशियों की वो कहाँ समझ पाई


© khush rang rina