...

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फर्क पड़ता है....
फ़र्क़ पड़ता है...
किसी के होने से किसी को खोने से
फ़र्क़ पड़ता है...
तन्हा अकेले रोने से करवट बदल बदलकर सोने से
फ़र्क़ पड़ता है...
खाली बैंक खाते से झूठे रिश्ते नाते से
फ़र्क़ पड़ता है...
महंगे होते घर के किराए से अपने में छिपे पराए से
फ़र्क़ पड़ता है...
अकेले भटकते कदमों से हर दिन मिलते सदमों से
फ़र्क़ पड़ता है...
कमज़ोर होते शरीर से ख़त्म होते ज़मीर से
फ़र्क़ पड़ता है...
बेबस होकर लिखने से पेट की ख़ातिर बिकने से
© अभिषेक शर्मा