...

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अबकी आना तो...
सुनो, अबकी आना तो,
बैठना मेरे संग नदी किनारे पर,
मैं तुमसे गहराइयों पर बाते करना चाहती हूं,
मैं नापना चाहती हूं तुम्हारे और
अपने मन की बातों को,
और सुनना चाहती हूं तुम्हारे आसमां के बारें में,
मैं उम्मीद रखना चाहती हूँ "कल" की,
ये जानते हुए की "कल" की उम्मीद
नहीं की जा सकती,
हां मैं जानती हूँ कि दुनिया की
कड़वाहट तुमने देखी है,
तुम मुझे मेरे ख़्वाबों से जगाना चाहते हो मगर,
मैं अपने हिस्से के ख़्वाब देखना चाहती हूं,
और अपने सपने भी तुम्हें बताना चाहती हूं,
तुम मुझे चांद नहीं दे सकते तो
उसकी बातें नहीं करते,
मगर मैं चांद तारों की उम्मीद रखना चाहती हूँ,
मैं एक खूबसूरत भविष्य की
कल्पना करना चाहती हूं,
तुम्हारे साथ ही लम्हों को समेटना चाहती हूं,
हां...यदि तुम भी यही चाहते हो, तो ही आना,
क्योंकि मेरा ह्रदय, दुनिया की कड़वाहट के लिए नहीं,
तुम्हारे प्रेम के लिए बना है,
तो मैं प्रेम को ही जीना चाहती हूं।
- Vishakha Tripathi
© Vishakha Tripathi