...

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मैं फौजी हूं
मैं कैसे बता दू फौजी हूं ,
सरहद का मैं खोजी हूं ।
हमे बिना बात सोने नहीं दिया ,
दोस्त के जाने पर भी रोने नहीं दिया ।।

मैं तो नहीं रोता हूं ,
ना ख्वाबों में खोता हूं ।
फिर भी तुम्हे रुला दूंगा ,
एक कहानी ऐसी सुना दूंगा ।।

चलो रुला देता हूं ,
एक कहानी सुना देता हूं।
एक बार की बात थी, काली घनी रात थी ,
साब का फोन था , मैं मौन था ।।

कोई साथी खो गया था ,
क्योंकी घाटी में हमला हो गया था ।
साब ने कहा था यह लम्हा तुझे सताएगा ,
लेकिन यह तू ही बताएगा ।।

नहीं जनाब मैं ऐसे ना रह पाऊंगा,
मैं वहां न जा पाऊंगा ।
उस परिवार का दुःख ना सह पाऊंगा ,
मै यह सब ना कह पाऊंगा ।।

वो बैंड मैं न बजाऊंगा ,
मेरे भाई को मै न सजाऊंगा ।
अरे तेरा ही दिल दहलायेगा ,
तो तू फौजी कैसे कहलायेगा।।

सही मे यह लम्हा मुझको सता रहा था,
मुझे अफसोस था की मैं क्या बता रहा था।
वो बोला अहसान तू जता ना ,
सच क्या है वो तु बताना ।।

मैं क्या बताता साहेब ,
पत्थर दिल ने ही बता दिया ।
एक अहसान उसने भी जता दिया,
अंत में उसने ही मुझे बता दिया ।।

चल तूने कहा वो मैंने मान लिया है,
मेरा बेटा शहीद यह मैंने जान लिया है।
मेरे को लगा उसका पहले बताना पाप था ,
फिर पता चला वो फौजी का बाप था ।।

मै यह सब ना समझ पाया था ,
की कैसे वो यह सब सह पाया था ।
निखिल कहता है,
यह फौजी कैसे सहता है।।#WritcoPoemChallenge
The sound of the stadium's roar,
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Down the pitch,
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