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tumhari yaden or main
तुम्हारी यादें और मैं
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ऋतु मौसी जब अमन के शरारत पे कहती है
 की हां बच्चे शुरुआत में अपने शरारत से नाक में दम ज़रूर कर देते हैं
 लेकिन जैसे - जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं
 उनमें समझदारी और शालीनता आता - जाता है
 इस बात पे मुझे तुम्हारी याद आती है
 मुझे लगता है न अब तुम्हारी यादें भी वक्त के साथ
 समझदार हो गई ,
 अब पहले सा तेरी यादें मुझे परेशान नही करती है
 बल्कि अपने नए अंदाज से मुझे हैरान करती है
 जहां कल तक ये हरदम मुझे सताती रहती थी
 भीड़ में भी तन्हा कर रुलाती रहती थी
 वहीं अब महीनों तक जानें कहां बेखबर रहती है
 पता नही मुझसे दूर किधर...