...

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लगता था मुझे
जबतक तू था, यूं लगता था मुझे ,
दिल धड़कता भी नहीं था,
जब तक देख न लू तुझे।
अब जब तेरी अस्तित्व ही रहा नहीं,
यह गलतफहमी भी है नहीं।
मिलती है ,रोज मुझे इं गलियों में,
में तुझसे मिलता हूं, पर मुझे सुकून ,
तुझे देख मिलती नहीं,
हां, रुक जाते है कदम,
आज भी तेरे आहाटों को सुनने को,
पर अब जुटते नहीं मेरे चाहत,
तेरे ख्वाहिशें को बुनने को।
हां, चुभती है तेरी, सिंदूर ,
कंगन, खूबसूरती,और तेरी एहसास,
सुन तू कल भी थी ,
कल भी रहे गी मेरे प्यार की अरदास।