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मोर मुकुट पंख फैलाने वाली
मोर मुकुट पंख फैलाने वाली
नयन नीर खोती क्यूं हो
रात में आज तक तुम ठीक से
सोती क्यूं नहीं हो

आंख धस गई है माथे पर सिकन है
इतनी तुम सोचती क्यूं हो
खबर है
रूम पर तुम रोती क्यूं हो

हंसकर मचलने वाली
गम में डूबी क्यों हो
दर्द असहज सहती हो
जुवान खोलती क्यूं नहीं हो

मन मंदिर में बसी है मूरत
तो उढ़ेलती क्यों नहीं हो
शिखा खोलकर चल रही हो
असल बात क्या है बोलती क्यों नहीं हो
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