...

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आधी सड़क बेघर यार का...
#सड़क
आधी सड़क सरकार का,
आधी सड़क निर्माणकार का;
आधी सड़क अनजानो का,
आधी सड़क पेड़ की छाव का,
आधी सड़क बेघर यार का,

नहीं खबर उसे कौन छोड़ गया,
उसे इस खंडहर में;
नहीं जाने की आया वो कहां से,
बस जब आंख खुली,
तो पाया उसने अपने आप को सड़क में,

रात का वक्त था,
ठंड बढ़ रही थी,
यार मेरा टिटूरने लगा था,
पर सड़क किनारे नंगे बदन,
रात बिताने पर वो मजबूर था,

रात तो बीत गई जैसे तैसे,
सुबह आंख खुली,
जब सूरज की रोशनी चुभी आंखों में,
निकल पड़ा वो खाने की तलाश में,
भूख जो लगी थी उसे,

आते जाते राहगीरों से,
भीख मांगी उस ने
कुछ खाने के लिए,
पर रहेम ना कि किसी ने,
मेरे यार पे,

थक हार कर बैठ गया,
वो सड़क के किनारे,
तब देखा उसने कुछ दूरी पर,
हे एक कूड़े का ढेर,
जिसमें पड़ी थी एक बासी रोटी,

फट से उठाली,
उसने वो रोटी,
चंद मिनटों में खाली,
थी तो वो रोटी बासी,
पर मेरे यार के लिए थी काफी।

© Hidden Writer