...

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उदासी का सुकून
उदासी ढूंढ ही लेती है मुझे,
जब भी मेरा मन
कहीं नग्न अवस्था में मिलता है,
वो आकार लेकर
धीरे से मुझसे लिपट जाती है।

खुशी, दूर खड़ी
ये देखकर मुस्कुराती है,
पर जाने किस बात की
नाराज़गी है उसको,
जो पास आने से डरती है।

जब भी मैं
उदासी के साथ लंबा वक्त बिताकर
थक जाता हूँ,
तो जबरन कोशिश करता हूँ
खुशी को अपनी ओर खींचने की,
कि शायद इस बार
वो मेरी हो जाए।
पर खुशी क्षणभंगुर है,
ठहरती ही नहीं,
जैसे आते-आते
महसूस होते ही
गायब हो जाती...