...

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एक नई सुबह
सुबह को फिर निमंत्रण मिला है
अब प्रभाकर का मुखड़ा खिला है
मन में उत्साह भरने का पल है
जो अंँधेरा था वो बीता कल है

जो है खोया उसे भूल जाओ
पाया जो उसका उत्सव मनाओ
बीती बातों को मत याद करना
दुख ही दुख मात्र पाओगे वर्ना

चढ़ती हैं चीटियां जब चढ़ाई
गिरती है वो कई बार भाई
छोड़ती है मगर वो न चढ़ना
करती पूरी वो अपनी चढ़ाई

जब पराजय से इतना डरोगे
प्राप्त कैसे सफलता करोगे
जीवन में सफल तब बनोगे
खूब संघर्ष तुम जब करोगे

तो उठो किसकी है फिर प्रतीक्षा
तुम ये "कौशल" ग्रहन कर लो शिक्षा
असफलता से ना घबराओ
प्रगति के पथ पे तुम बढ़ते जाओ

© Kaushal