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ग़ज़ल "यादों का ट्रैफ़िक"
नगर दिल का बिना तेरे बहुत वीरान रहता है
मेरा ही अक्स मुझसे आज कल अंजान रहता है
बहुत कोशिश की है मैंने बनूँ इंसान मैं भी नेक
निहाँ इस जिस्म में मेरे कोई शैतान रहता है
नहीं गिरते ख़िज़ाँ में भी ज़मीं पर शाख़ से पत्ते
हरिक पत्ता शजर का इसलिए हैरान रहता है
सभी कुछ पास है उसके मगर फिर भी है खालीपन
बड़ी बेचैनियों में आज कल इंसान रहता है
गुज़रता ही नहीं दिल से तेरी यादों का ट्रैफ़िक अब
मैं हूँ वो पुल हमेशा ही जो अब सुनसान रहता है
न कर संजीदा अपनी ज़िंदगी को और इतना भी
"सफ़र" बच्चा तेरे अंदर भी इक नादान रहता है
© -प्रेरित 'सफ़र'
मेरा ही अक्स मुझसे आज कल अंजान रहता है
बहुत कोशिश की है मैंने बनूँ इंसान मैं भी नेक
निहाँ इस जिस्म में मेरे कोई शैतान रहता है
नहीं गिरते ख़िज़ाँ में भी ज़मीं पर शाख़ से पत्ते
हरिक पत्ता शजर का इसलिए हैरान रहता है
सभी कुछ पास है उसके मगर फिर भी है खालीपन
बड़ी बेचैनियों में आज कल इंसान रहता है
गुज़रता ही नहीं दिल से तेरी यादों का ट्रैफ़िक अब
मैं हूँ वो पुल हमेशा ही जो अब सुनसान रहता है
न कर संजीदा अपनी ज़िंदगी को और इतना भी
"सफ़र" बच्चा तेरे अंदर भी इक नादान रहता है
© -प्रेरित 'सफ़र'
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