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बहनों का माँ हो जाना
बहनों का " माँ " हो जाना
ये बहनें भी न अक्सर " माँ " हो जाती हैं
तब ...
जब देखते ही एक दूसरे को फूल सी खिल जाती हैं
अंक में भर कर कुछ पल
सुन कर एक दूसरे की धड़कन
राहत सी पा जाती हैं
ये बहनें तब एक दूसरे की "माँ " हो जाती हैं
जब छिपा लेती हैं एक दूसरे के राज़ मन में
उँडेल देती हैं अपनी पीड़ाओं के कतरे
बून्द बून्द कर एक दूजे के समक्ष
और सहेज लेती हैं उन कतरों को
अपने मन की अंजुरी में
ये बहनें तब अक्सर " माँ " हो जाती हैं
जब अपनी पसंदीदा चीज़ें एक दूसरे को
खुशी खुशी दे डालती हैं
ये कह कर ये तुझपे ज़्यादा जंचेगी
बिना एक शिकन भी चेहरे पर लाए
रख देती हैं
विदा के वक़्त झोले में " कुछ " चुपचाप
ये बहनें तब एक दूसरे की " माँ " हो जाती हैं
जब वापसी में गले मिलकर एक दूसरे से
कहती हैं कितना अच्छा लगा न आज
ऐसे ही आ जाया कर , अगली बार जल्दी आना
विदा होकर पोंछती हैं
आँखों के कोरों को उंगली से मुस्कुराते हुए
तब ये बहनें सच में एक दूसरे की " माँ " हो जाती हैं
पूनम अग्रवाल
© All Rights Reserved
ये बहनें भी न अक्सर " माँ " हो जाती हैं
तब ...
जब देखते ही एक दूसरे को फूल सी खिल जाती हैं
अंक में भर कर कुछ पल
सुन कर एक दूसरे की धड़कन
राहत सी पा जाती हैं
ये बहनें तब एक दूसरे की "माँ " हो जाती हैं
जब छिपा लेती हैं एक दूसरे के राज़ मन में
उँडेल देती हैं अपनी पीड़ाओं के कतरे
बून्द बून्द कर एक दूजे के समक्ष
और सहेज लेती हैं उन कतरों को
अपने मन की अंजुरी में
ये बहनें तब अक्सर " माँ " हो जाती हैं
जब अपनी पसंदीदा चीज़ें एक दूसरे को
खुशी खुशी दे डालती हैं
ये कह कर ये तुझपे ज़्यादा जंचेगी
बिना एक शिकन भी चेहरे पर लाए
रख देती हैं
विदा के वक़्त झोले में " कुछ " चुपचाप
ये बहनें तब एक दूसरे की " माँ " हो जाती हैं
जब वापसी में गले मिलकर एक दूसरे से
कहती हैं कितना अच्छा लगा न आज
ऐसे ही आ जाया कर , अगली बार जल्दी आना
विदा होकर पोंछती हैं
आँखों के कोरों को उंगली से मुस्कुराते हुए
तब ये बहनें सच में एक दूसरे की " माँ " हो जाती हैं
पूनम अग्रवाल
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