...

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तुम्हारा प्रेम

तुम्हारी सादगी मेरे दिल में घर कर गई
जिसे ढूंढती थी मैं
दिन के उजालों में
तो कभी रातों के ख्वाबों में
बरसों की थकी हुई थी आँखें मेरी
ना जाने कब ये तुम पर थम गई


तुम्हारी सादगी मेरे दिल में घर कर गई
तुम्हारी कम बोलने की आदत ने
मुझसे बिन बोले सब कह डाला
बेरंग थी मेरी तो जिंदगी
तुमने मुझे अपने प्रेम में रंग डाला
फिर एक रोज़ हुआ कुछ ऐसा
ना चाहते हुए भी मैं तुम्हारी बन गई


तुम्हारी सादगी मेरे दिल में घर कर गई
तुम्हारी आंखें मुझसे इतनी बातें करती हैं
जो तुम मुझसे कह नहीं पाते वो मुझसे कहती हैं
जानें क्यों तुम्हारे मन की बातें
मेरा मन पढ़ लेता है कैसे
हम लोग सच में दो जिस्म एक जान हैं जैसे


मानो या ना मानो पर सच में होगा
पिछले जन्म में अपना जीवनसाथी का रिश्ता
जो इस जन्म में बन कर आये हो
जैसे सिर्फ मेरे लिए कोई प्यार का फरिश्ता
तुम्हारी सादगी मेरे दिल में घर कर गई